Top 10 Best Mirza Ghalib Shayari in Hindi

Mirza Ghalib Shayari in hindi

Mirza Ghalib Shayari in Hindi मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी हिंदी में

मिर्जा गालिब उर्दू, फारसी और हिंदी के सबसे प्रसिद्ध शायर हैं। वह मुगल काल के एक प्रसिद्ध कवि और बुद्धिजीवी थे। उनकी कविताओं को उनकी सुंदरता, सादगी और समझने में आसान भाषा के लिए जाना जाता है। दोस्तों जहा भी शेर-ओ-शायरी का ज़िक्र जहा होता वहा सबसे पहले  नाम महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब का आता हैं.  ग़ालिब उर्दू शायरी का वह चमकता सितारा हैं जो आज भी आकाश के चमचमाते तारे  की तरह चमक रहा।

ग़ालिब की शायरी के उदाहरण निम्नलिखित है:

♥तुम न आए तो क्या सहर न हुई;
हाँ मगर चैन से बसर न हुई;
मेरा नाला सुना ज़माने ने;
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई।
~ Mirza Ghalib

Mirza Ghalib Shayari in Hindi

♥देखिये पाते हैं उश्शाक़, बुतों से क्या फ़ैज़;
एक ब्राह्मण ने कहा है, कि यह साल अच्छा है!
~ Mirza Ghalib

♥सिसकियाँ लेता है वजूद मेरा गालिब,
नोंच नोंच कर खा गई तेरी याद मुझे।
~ Mirza Ghalib

♥इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतश ग़ालिब, कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।

~ Mirza Ghalib

Mirza Ghalib Shayari in Hindi

♥दुख देकर सवाल करते हो,
तुम भी गालिब, कमाल करते हो;

देख कर पुछ लिया हाल मेरा,
चलो इतना तो ख्याल करते हो;

शहर-ए-दिल मेँ उदासियाँ कैसी,
ये भी मुझसे सवाल करते हो;

मरना चाहे तो मर नही सकते,
तुम भी जीना मुहाल करते हो;

अब किस-किस की मिसाल दूँ तुमको,
तुम हर सितम बेमिसाल करते हो।
~ Mirza Ghalib

Mirza Ghalib Shayari in Hindi

♥बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह,

जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है।

~ Mirza Ghalib

♥ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना;
बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़-दाँ अपना।
~ Mirza Ghalib

♥कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीम-कश को;
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।
~ Mirza Ghalib

Mirza Ghalib Shayari in Hindi

♥मशरूफ रहने का अंदाज़ तुम्हें तनहा ना कर दे ‘ग़ालिब’;
रिश्ते फुर्सत के नहीं तवज्जो के मोहताज़ होते हैं।
~ Mirza Ghalib

♥हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है;
तुम्ही कहो कि ये अंदाजे-गुफ्तगू क्या है;

न शोले में ये करिश्मा न बर्क में ये अदा;
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंद-ख़ू क्या है;

Mirza Ghalib Shayari in Hindi

♥ये रश्क है कि वो होता है हमसुखन तुमसे;

वरगना खौफे-बद-अमोजिए-अदू क्या है;

चिपक रहा है बदन लहू से पैरहन;
हमारी जेब को अब हाजते-रफू क्या है;

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा;
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है;

बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता;
वगरना शहर में ग़ालिब कि आबरू क्या है।
~ Mirza Ghalib

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